Rath Yatra 2025 | पढिये रथ यात्रा के बारे मे और जाणिये यात्रा का महत्व
रथ यात्रा क्या है?
रथ यात्रा भारत में, विशेषकर ओडिशा के पुरी में, भगवान जगन्नाथ को समर्पित एक अत्यंत महत्वपूर्ण और भव्य हिंदू त्योहार है। ‘रथ यात्रा’ शब्द का अर्थ ‘रथों की यात्रा’ या ‘रथों का सफर’ होता है।
यह एक वार्षिक उत्सव है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र (बलराम) और उनकी बहन देवी सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियों को बड़े, रंगीन रथों पर बैठाकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। इस गुंडिचा मंदिर को उनकी मौसी का घर माना जाता है। देवता वहां नौ दिनों तक रहते हैं और फिर ‘बहुड़ा यात्रा’ नामक वापसी की यात्रा में वे जगन्नाथ मंदिर लौट आते हैं।
रथ यात्रा का इतिहास और मूल
रथ यात्रा का इतिहास हजारों साल पुराना है। इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, स्कंद पुराण और कपिला संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। यद्यपि पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा किया गया था, कुछ स्रोतों के अनुसार यह उत्सव उससे भी पहले से अस्तित्व में था। इस यात्रा को धार्मिक समानता और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान सभी भक्तों को दर्शन देते हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है? (महत्व)
रथ यात्रा मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएँ और धार्मिक महत्व हैं:
- मौसी के घर की यात्रा: सबसे प्रमुख मान्यता यह है कि देवी सुभद्रा अपनी मौसी, गुंडिचा देवी के घर (जन्म स्थान) जाना चाहती थीं। उनकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र उनके साथ रथ में बैठकर यात्रा करते हैं।
- प्रजा को दर्शन: ऐसा माना जाता है कि रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ, जो ब्रह्मांड के स्वामी हैं, अपने मंदिर से बाहर आकर अपने सभी भक्तों को दर्शन देते हैं। विशेष रूप से, जिन्हें अन्य दिनों में मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता, उन्हें भी रथ से भगवान के दर्शन करने का अवसर मिलता है। इससे आम लोगों को भगवान का सान्निध्य प्राप्त होता है और उन्हें मोक्ष मिलता है ऐसा माना जाता है।
- समता का संदेश: पुरी के गजपति महाराज (राजा) स्वयं सोने की झाड़ू से रथों के सामने का मार्ग साफ करते हैं, इस अनुष्ठान को ‘छेर पहनरा’ कहते हैं। यह दर्शाता है कि भगवान की दृष्टि में कोई भी श्रेष्ठ नहीं है, राजा हो या सामान्य व्यक्ति, सभी समान हैं।
- नवीनीकरण का उत्सव: हर 12 साल में एक बार देवताओं की मूर्तियों को नई लकड़ी की मूर्तियों से बदला जाता है, जिसे ‘नवकलेबर’ उत्सव के रूप में जाना जाता है। रथ यात्रा एक तरह से इस नवीनीकरण के उत्सव का हिस्सा है।
रथ यात्रा के अनुष्ठान और परंपराएँ
रथ यात्रा कई पवित्र अनुष्ठानों और परंपराओं से भरी होती है:
- स्नान पूर्णिमा: रथ यात्रा से पहले देवता को 108 घड़े पवित्र जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद देवताओं को 15 दिनों के लिए एकांत में रखा जाता है, इसे ‘अनावासरा’ कहते हैं।
- रथ निर्माण: रथ यात्रा के लिए हर साल तीन भव्य लकड़ी के रथ नए सिरे से बनाए जाते हैं। प्रत्येक रथ का रंग, ऊँचाई और पहियों की संख्या अलग-अलग होती है:
- भगवान जगन्नाथ का रथ (नंदीघोष): यह सबसे बड़ा रथ होता है, जिसमें 16 पहिए होते हैं। इसे पीले और लाल रंगों से सजाया जाता है।
- भगवान बलभद्र का रथ (तालध्वज): इसमें 14 पहिए होते हैं और यह हरे व लाल रंगों का होता है।
- देवी सुभद्रा का रथ (दर्पदलन): इसमें 12 पहिए होते हैं और यह काले व लाल रंगों का होता है।
- पहांडी बिजे: रथ यात्रा के दिन भोर में मंगल आरती, अभिषेक और अन्य अनुष्ठानों के बाद, देवताओं की मूर्तियों को मंदिर से बाहर निकालकर रथों पर लाया जाता है। इस जुलूस को ‘पहांडी बिजे’ कहते हैं।
- छेर पहनरा: पुरी के गजपति महाराज (राजा) सोने की झाड़ू से रथों के सामने का मार्ग साफ करते हैं। यह अनुष्ठान विनम्रता और समानता का प्रतीक है।
- रथ खींचना: ‘छेर पहनरा’ के बाद लाखों भक्त बड़ी रस्सियों से इन भव्य रथों को गुंडिचा मंदिर की ओर खींचते हैं। ऐसा माना जाता है कि रथ खींचने से पुण्य मिलता है और भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- हेरा पंचमी: रथ यात्रा के पांचवें दिन देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ से मिलने गुंडिचा मंदिर जाती हैं।
- बहुड़ा यात्रा: नौ दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रहने के बाद, देवता वापस जगन्नाथ मंदिर आते हैं। यह वापसी की यात्रा ‘बहुड़ा यात्रा’ के रूप में जानी जाती है।
- सुना बेशा: मुख्य मंदिर में लौटने पर देवताओं को सोने के आभूषणों से सजाया जाता है, इसे ‘सुना बेशा’ कहते हैं।
- नीलाद्रि बिजे: यह रथ यात्रा का अंतिम दिन होता है, जब देवता मंदिर में वापस जाते हैं।
पुरी रथ यात्रा 2025 की महत्वपूर्ण तारीख
2025 में पुरी रथ यात्रा शुक्रवार, 27 जून 2025 को मनाई जाएगी।
रथ यात्रा केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह भक्ति, संस्कृति, समानता और सामुदायिक एकता का एक भव्य प्रदर्शन है, जो ओडिशा की समृद्ध परंपरा का प्रतीक है।
