क्या हम इंसान फाइनली भगवान बन चुके हैं ?
क्या हम इंसान फाइनली भगवान बन चुके हैं वेल जिस तरह भगवान ने अपने एक अंश से हम इंसानों को बनाया रिसेंटली कोलंबिया यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट ने भी एक कैंसर पेशेंट की जान बचाने के लिए उसका एक मिनी क्लोन बनाया यानी एक असली इंसान का हूबहू कॉपी ताकि ओरिजिनल पेशेंट की बॉडी कीमोथेरेपी से कैसे रिएक्ट करेगी इसे वो टेस्ट कर सके पर आखिर यह छुटकू सा ह्यूमन क्लोन यानी इंसानों का कार्बन कॉपी दिखता कैसे क्या वो अब जिंदा भी है और ह्यूमन क्लोनिंग तो मोस्ट ऑफ द कंट्रीज में तो बैंड है ना इल्लीगल है नोन क्लोनिंग टेक्निक्स टू एक्चुअली क्रिएट अ ह्यूमन
बीइंग इज अटेस्टेड अनसेफ एंड मोरली अन एक्सेप्टेबल सो ऐसा कौन सा लूप होल है जिसकी मदद से ये साइंटिस्ट और इवन अब तो कुछ कंपनीज तक सीक्रेट ह्यूमन क्लोनस बना रहे हैं और अगर ऐसा है तो क्या ऐसा नहीं हो सकता इनमें से कितने ही क्लोनस आज हमारे बीच में कहीं पर सीक्रेट रह रहे हैं वेल मॉडर्न साइंस ना आज कितना एडवांस हो चुका है हम में से कितने लोग को तो इसकी जरा सी भी खबर नहीं है और यह तो लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की बस सिर्फ एक झलक थी यूके की एक पीएचडी स्टूडेंट अलेक्सिया लोपेज ने तो रिसेंटली ब्रह्मांड का एक ऐसा विशाल मेगा स्ट्रक्चर ढूंढ निकाला है जिसे फिजिक्स के
सिद्धांतों के हिसाब से एजिस्ट ही नहीं करना चाहिए था इस विशाल स्ट्रक्चर का नाम है द बिग रिंग और ये कैसे हमारी यूनिवर्स की समझ को एक कदम और आगे बढ़ाएगा इसे हम आगे थोड़ा डिटेल में डिस्कस करेंगे बट जितनी तरक्की आज विज्ञान बड़े स्केल पर कर रहा है ना उससे कई ज्यादा इंटरेस्टिंग टेक्नोलॉजी तो माइक्रो स्केल पर डिवेलप हो चुका इस वीडियो को जरा ध्यान से देखना कैसे यह स्प्रिंग जैसी दिखने वाली सूक्ष्म सी चीज अपने आप ही तेजी से घूम रही है और कैसे वो एक सुस्त स्पर्म यानी कि वरय को पकड़कर एग के अंदर घुसा रही है जानते हो यह चीज क्या है वेल ये एक छोटा सा रोबॉट
न्यू टेक्नोलॉजी जिसमें हम हमारे ही स्पर्म्स को सुसाइड मिशन पर भेज देते हैं
नैनो रोबॉट या नैनोबोट है जिन्हें साइंटिस्ट ने कैंसरस सेल्स को टारगेट करके मारने के लिए बनाया अब एगजैक्टली साइंटिस्ट ये कैसे कर रहे हैं इसकी टेक्नीक भी आप कुछ ही मिनटों में जान जाओगे एंड यू आर गोइंग टू बी माइंड पिछले सेंचुरी की तरह ही इस सेंचुरी में भी ऐसे कई सारे कमाल के डिस्कवरीज और इंवेंशंस हुए हैं जो कि दुनिया को आगे बदलने वाले हैं लेकिन किसी ने उन पर ध्यान ही नहीं दिया क्योंकि हम तो instagram’s स्टार्ट विद अ फर्स्ट बिग डिस्कवरी द बिग रिंग देखो रात में नॉर्थ की दिशा की ओर अगर आप यहां पर बूटिस कंसन और उरसा मेजर कंसन के बीच में ध्यान से
देखोगे तो आपको एक ऐसा बड़ा सा रिंग जैसा स्ट्रक्चर दिखाई देगा इसी का नाम है द बिग रिंग यह इतना विशाल है कि एस्टिमेट्स बताते हैं कि इसकी चौड़ाई नापने के लिए हमें करीब 13000 मिल्की वे गैलेक्सी को एक लाइन में अरेंज करना पड़ेगा और एगजैक्टली यही बात इसे फिजिक्स के सिद्धांतों के बिल्कुल अगेंस्ट लेकर चली जाती है लेट मी एक्सप्लेन यू हाउ एक्चुअली हमें साइंस में एक पुराना सिद्धांत है कॉल्ड द कॉस्मोलॉजिकल प्रिंसिपल जो कहता है कि इस ब्रह्मांड में ऑन अ लार्जर स्केल कोई भी स्पेस यानी कि जगह स्पे स्पेशल नहीं होती हर जगह पर आप ऑलमोस्ट सेम ही चीजें देखोगे
और हर जगह फिजिक्स के सभी लॉज भी एक जैसे ही काम करेंगे क्योंकि इस प्रिंसिपल के अनुसार आज से करीब 13.8 बिलियन साल पहले जब बिग बैंग हुआ था जिसने बाय द वे अगर आपको नहीं मालूम तो हमारे यूनिवर्स को जन्म दिया था तो उस वक्त विद इन माइक्रो सेकंड्स एक सिंगल पॉइंट में समाई हुई सारी एनर्जी किसी बॉम से निकले पर खचो की तरह चारों दिशाओं में फेंकी गई थी जिससे फिर आगे चलकर हाइड्रोजन कार्बन ऑक्सीजन इन सभी एलिमेंट्स के एटम्स बने यही वजह है कि अगर आप आप इस ब्रह्मांड के शुरुआती समय के रेडिएशंस यानी कि कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशंस जिसे सीएम बीआर बोलते
हैं फॉर शॉर्ट को ध्यान से अगर देखोगे तो वहां भी एक्सेप्ट फॉर सम स्मॉल डार्क स्पॉट्स हियर एंड देयर आप देखोगे कि रेडिएशंस हर तरफ इक्वली फैले हुए हैं लेकिन अभी जो द बिग रिंग नाम का मेगा स्ट्रक्चर हमें मिला है वो इस कॉस्मोलॉजिकल प्रिंसिपल के बिल्कुल अगेंस्ट जाता है क्योंकि इट रिप्रेजेंट्स अ स्पेशल प्लेस इन द यूनिवर्स जहां पर ब्रह्मांड का एक अच्छा खासा अमाउंट ऑफ मैस कंसंट्रेटेड है प्लस अगर सिर्फ एक ऐसा स्ट्रक्चर हमें मिलता तो भी ये ठीक था एक एनमल हो सकती है या फिर हम बोल भी सकते थे कि शायद साइंटिस्ट को इससे मापने में कोई
गलती हुई होगी लेकिन साइंटिस्ट को ऐसे और भी तीन स्ट्रक्चर्स मिले हैं क्लाउसो ग्रुप द ग्रेट वॉल और द जायंट आर्क जो लगभग इतने ही बड़े हैं सो व्हाट नाउ यू मे आस्क कि फर्क क्या पड़ता है कि कॉस्मोलॉजिकल प्रिंसिपल डिस्प्रूव हो जाए इससे क्या हो जाएगा ब्रह्मांड इक्वली डिस्ट्रीब्यूटर है या नहीं है इससे हमें क्यों फर्क पड़ना चाहिए वेल दैट्ची बिना कॉस्मोलॉजिकल प्रिंसिपल के हमारे फिजिक्स के ऑलरेडी टफ कैलकुलेशंस और भी 10 गुना हार्ड हो जाएंगे क्योंकि जब आप पृथ्वी पर आज कोई एक्सपेरिमेंट करते हो और फिर उसे लेट्स से 5 साल बाद फिर से रिपीट करते हो
तो भले ही आपने वो एक्सपेरिमेंट सेम लैब में भी क्यों ना किया हो उन पांच सालों में हमारी पृथ्वी वो जिसमें मौजूद है वो सोलर सिस्टम हमारे मिल्की वे गैलेक्सी और ये गैलेक्सी जिसमें एंबेडेड है वो लोकल ग्रुप ये सबकी मूवमेंट मिलाकर हम एटलीस्ट मिलियंस एंड बिलियंस ऑफ किलोमीटर्स मूव कर चुके होते हैं इन स्पेस अब अगर कॉस्मोलॉजिकल प्रिंसिपल ना हो जो यह कहता है कि हर जगह फिजिक्स के लॉस सेम है तो हमें पृथ्वी पर किए जाने वाले सभी एक्सपेरिमेंट्स में हमारी स्पेस में जो करंट पोजीशन है उसे भी हर बार कंसीडरेशन में लेना होगा फॉर एक्यूरेट कैलकुलेशंस
बेसिकली मींस इस एक अकेले डिस्कवरी ने हमारी फिजिक्स और यूनिवर्स की पूरी अंडरस्टैंडिंग को चैलेंज करके रख दिया है एंड नाउ ओनली टाइम विल टेल कि साइंटिस्ट इस यूनिक पोट होल से हमें कैसे बाहर निकाल सकते हैं अब बढ़ते हैं दूसरे बड़े साइंटिफिक अचीवमेंट की तरफ जो है नैनो बॉट्स एक इंसानी शरीर काफी कॉम्प्लेक्शन क्यों ना हो कई ऐसी सर्जरीज होती है जिसमें कॉम्प्लिकेशंस को अवॉइड करना एक्सट्रीमली मुश्किल होता है जैसे फॉर एग्जांपल यहां पर हमारे कान के बिल्कुल बगल में ही एक पैरोट ग्लैंड होता है ये ग्लैंड ना अगर ट्यूमर हो जाए और उसे
निकालने की नौबत आ जाए तो ऐसी सर्जरी परफॉर्म करना एक्सपीरियंस सर्जन के लिए भी एक्सट्रीमली ट्रिकी हो जाता है अगर गलती से भी ट्यूमर कट करते वक्त ये फेशियल नर्व कट हो गई तो पेशेंट का आधा फेस ही पैरालाइज हो जाएगा देन सिमिलर डेंजर्स थायरॉयड ऑपरेशन के दौरान भी होते हैं गलती से भी अगर रिकरेंट रिंगल नर्व कट हो गई जो हमारे वोकल कॉर्ड्स को कंट्रोल करती है तो पेशेंट हमेशा हमेशा के लिए गूंगा हो जाएगा अब यार इंसान तो इंसान ही ठहरे गलती किसी से भी हो सकती है और इसीलिए पिछले कई सालों से हमारे मेडिकल प्रोफेशनल्स को डेस्प्रिंग
हो यानी कि कम से कम चीर फाड़ करने की जरूरत पड़े जिससे पेशेंट्स बीमारी से ज्यादा ट्रीटमेंट से ही करने या उसे रिग्रेट करने पर मजबूर ना हो और इसीलिए रिसेंटली साइंटिस्ट हो ने ऐसे नैनो बॉट्स बनाए जिन्हें बस अगर किसी ड्रग की तरह आपके शरीर में इंजेक्ट कर दिया जाए तो वो बिल्कुल टारगेटेड तरीके से पैरोट थायरॉयड या कहीं के भी ट्यूमर हो उन्हें बिना किसी कॉम्प्लेक्शन ये जो स्पर्म ननो बॉट फ्यूजन हमने शुरू में देखा इसको रिसेंटली साइंटिस्ट ने और अपग्रेड करके एक नया ट्रीटमेंट डेवलप किया है उन्होंने स्पर्म सेल्स में डॉक्सो रूबी सन हाइड्रोक्लोराइड
नाम का एक टॉक्सिक एंटी कैंसर ड्रग लोड किया फिर आयन ऑक्साइड से बने नैनो बॉट्स को मैग्नेटिकली कंट्रोल करके उनसे उन एंटी कैंसर स्पर्म्स को पिक किया और फिर उन घातक स्पर्म्स को किसी सुसाइड मिशन की तरह कैंसर सेल्स में पेनिट्रेट करवाया उन्हें किल करने के लिए इससे बेसिकली एंटी कैंसर ड्रग्स के दो मेजर साइड इफेक्ट्स खत्म हो गए क्योंकि पहले एंटी कैंसर ड्रग्स आसपास के हेल्दी टिशूज को भी डैमेज किया करते थे और यही ड्रग्स हमारे बॉडी फ्लूइड के साथ मिक्स होकर डाइल्यूट भी हो जाते थे जिससे ट्रीटमेंट इन इफेक्टिव हो जाता था बट इस
न्यू टेक्नोलॉजी जिसमें हम हमारे ही स्पर्म्स को सुसाइड मिशन पर भेज देते हैं मैं यह दोनों भी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाती है और इसीलिए यह एक हाईली इफेक्टिव ड्रग डिलीवरी सिस्टम बन गया है सो टू ऑल द कैंसर पेशेंट्स आउट देयर मैं बस आपको इतना ही बोलूंगा जस्ट हैंग इन देयर बहुत ही जल्द आपके कैंसर को ठीक करना एक पास के क्लीनिक में जाकर इंजेक्शन लगवाने जितना आसान होने वाला है ेर नाउ लेट्स मूव ऑन टू द नेक्स्ट बिग अचीवमेंट जो है मिनिएचर न्यूक्लियर बैटरीज इमेजिन करो एक फोन जिसे कभी भी चार्ज ही नहीं करना पड़ एक रिमोट या घड़ी जिसका सेल कभी भी बदलने की जरूरत
4 Biggest SCIENTIFIC ACHIEVEMENTS of 2024
अगले 50 सालों तक आपके डिवाइसेज को चार्ज रख सकती है
ही ना पड़े और एक कैमरा जो आपके बेस्ट मोमेंट्स को कैप्चर करते वक्त बीच में ही अपना दम ना तोड़ दे वेल गेस व्हाट अगले चार से पांच सालों में ये एक्चुअली पॉसिबल हो सकता है एक चाइनीज कंपनी है बेजिंग बीटा वोल्ट न्यू एनर्जी टेक्नोलॉजी लिमिटेड करके उन्होंने एक ऐसी न्यूक्लियर पावर्ड बैटरी बनाई है जो है तो किसी सिक्के जितनी छोटी लेकिन वंस मैन्युफैक्चर्ड वो बिना किसी चार्जिंग या मेंटेनेंस के अगले 50 सालों तक आपके डिवाइसेज को चार्ज रख सकती है बस हाल ही में ही वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन ने भी इसे अपने ऑफिशियल लिंकन हैंडल पर प्रमोट
किया था लुकिंग एट व्हिच बेजिंग बीटा वोल्ट पीपल आर पॉजिटिव वो साल 2025 तक इन न्यूक्लियर पावर्ड बैटरीज को मार्केट में उतारना शुरू भी कर देंगे अब ये काम कैसे करता है वेल इसमें निकल का एक रेडियोएक्टिव आइसोटोप निकल 63 होता है जिसे दो सिंथेटिकली मेड डायमंड लेयर्स के बीच में प्लेस किया जाता है सो जब ये निकल 63 डीके होता है रेडियोएक्टिव डीके और हाई एनर्जी बीटा पार्टिकल्स या सिंपली हाई स्पीड इलेक्ट्रॉन रिलीज करता है तो वो इलेक्ट्रॉन ॉन्स डायमंड के एटम से उनके इलेक्ट्रॉन को नॉक आउट करके बाहर उड़ा देते हैं अब इससे ऑब् वियस डायमंड के
स्ट्रक्चर में एक तरफ काफी ज्यादा इलेक्ट्रॉन जमा हो जाते हैं और दूसरी तरफ उनकी कमी हो जाती है तो बस इन्हीं दो लो और हाई डेंसिटी रीजंस को अगर वायर से जोड़ दो तो उसमें से करंट फ्लो होना शुरू हो जाएगा अब टेक्निकली दिस इज एगजैक्टली सिमिलर टू सोलर सेल्स एक्चुअली फर्क बस इतना है कि यहां पर इलेक्ट्रॉन को नॉक करने के लिए सनलाइट के फोटॉन्स नहीं बल्कि एक रेडियो आइसोटोप के बीटा पार्टिकल्स यूज होते हैं पर आपके दिमाग में मे भी ये सवाल आएगा कि यार न्यूक्लियर पावर के लिए तो विशाल पावर प्लांट्स लगते हैं हजारों सेफ्टी प्रिकॉशंस लेने पड़ते हैं उसके कोर
को ठंडा रखने के लिए उसे पानी में डुबो के रखना पड़ता है एंड सो ऑन तो इतनी कॉम्प्लेक्टेड आखिर इस बेजिंग बीटा वोल्ट ने एक सिक्के जितने छोटे बैटरी में कैसे फिट कर लिया वेल वो ऐसे कि अनलाइक ट्रेडिशनल न्यूक्लियर पावर प्लांट्स जहां पर न्यूक्लियर एनर्जी पहले थर्मल और फिर इलेक्ट्रिकल एनर्जी में कन्वर्ट होती है और स्ट्रांग न्यूक्लियर फोर्स जो कि थर्ड फंडामेंटल फोर्स ऑफ नेचर है उसे यूज किया जाता है यहां पर बेजिंग बीटा वोल्ट में ऑन द अदर हैंड न्यूक्लियर एनर्जी को डायरेक्टली इलेक्ट्रिकल एनर्जी में कन्वर्ट किया जा रहा है और वीक न्यूक्लियर
फोर्स जो कि फोर्थ फंडामेंटल फोर्स ऑफ नेचर है उससे पावर किया जा रहा है इन बैटरीज को एंड हेंस दीज बैटरीज आर वेरी स्मॉल पर एनीवे रेडियोएक्टिविटी तो इवॉल्वड है तो सेफ्टी का क्या रेडियो एक्टिव सुनते सबसे पहले आपके दिमाग में तो कैंसर ही आया होगा सो वेल इस बैटरी में क्योंकि निकल 63 का रेडियोएक्टिव कोर इस्तेमाल हुआ है वो जैसे हमने जाना वीक न्यू न्यूक्लियर फोर्स से पावर्ड है यानी कि लो पेनिट्रेटिंग पावर वाले बीटा पार्टिकल्स एमिट करते हैं अब ये ट्रेडिशनल न्यूक्लियर प्लांट्स में इस्तेमाल होने वाले यूरेनियम 235 कोर जितना खतरनाक
स्ट्रांग न्यूक्लियर फोर्स नहीं पैदा करते यानी कि डायमंड जैसे दुनिया की वन ऑफ द हार्डेक सब्सटेंसस को पेनिट्रेट करने के बाद देयर इज नो चांस कि ये बीटा पार्टिकल्स बीटा वोल्ट बैटरी की प्रोटेक्टिव केसिंग को भी भेद पाएंगी सो ऑल इन ऑल ये नेक्स्ट जनरेशन बैटरीज काफी ज्यादा ही सेफ होंगे बट फिर भी एक्स्ट्रा प्रिकॉशंस के तौर पे बीटा वोल्ट कंपनी अपने इन बैटरीज को पहले सिर्फ मेडिकल डिवाइसेज और स्पेसटेक के लिए सप्लाई करने वाली है और फिर थोरली टेस्ट होने के बाद ही हम इन बैटरीज को कॉमन कंज्यूमर प्रोडक्ट्स में देख पाएंगे नाउ लेट्स मूव
क्लोनिंग टेक्नोलॉजी को इंसानों पर भी टेस्ट करना चाहते थे
ऑन टू आवर फोर्थ एंड द मोस्ट इंपॉर्टेंट अचीवमेंट जो है एक क्लोनिंग ब्रेकथ्रू जैसे कि हमने शुरुआत में जाना था बहुत सालों तक हमें लगता था कि ह्यूमन क्लोनिंग या इवन एनिमल क्लोनिंग इन जनरल इल्लीगल होता है बट देन जिस तरह की खबरें रिसेंटली सामने आ रही है ऐसा लग रहा है कि सीक्रेट क्लोनिंग एक काफी फ्लोरिशिंग इंडस्ट्री खड़ी हो चुकी है और लोग इससे मोटे पैसे छाप भी रहे हैं अब यह आखिर कैसे हो रहा है देखो साल 1996 97 में जब पहला क्लोंड जानवर डॉली द शीप सबके सामने आया तो कुछ साइंटिस्ट तुरंत इसी क्लोनिंग टेक्नोलॉजी को इंसानों पर भी टेस्ट करना चाहते थे
उनका मानना था कि वो इस टेक्नीक से इनफर्ट कपल्स की मदद कर सकते हैं इसी बीच फिर एक अमेरिकन क्लोनिंग कंपनी क्लोनेट का जन्म हुआ और उसने तुरंत डॉली के लिए इस्तेमाल की गई क्लोनिंग टेक्नीक सोमेटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर को इंसानों पर भी यूज करना शुरू कर दिया बेसिकली इस टेक्नीक में वो लोग पेरेंट से उनके कुछ टिशू सैंपल्स ले लेते थे और फिर उसमें से एक टिश्यू के सेल्स में से न्यूक्लियस निकालकर उसकी जगह पर दूसरे टिश्यू के न्यूक्लियस को इंजेक्ट कर देते थे और उसके बाद उन सैकड़ों सैंपल्स में से जो भी सेल मल्टीप्लाई करने लग जाते उसे एक एंब्रियो के स्टेज तक ग्रो
करने के बाद एक सरोगेट मदर के यूटेरस में इंप्लांट कर दिया जाता था इस प्रो र के अंत में फाइनली जो बच्चा पैदा होता था वो हूबहू अपने उस पेरेंट का क्लोन होता था उसका कार्बन कॉपी जैसा दिखता था जिसका उसे न्यूक्लियस मिला था सिंपली पुट वो एक तरह से अपने पेरेंट का एक हूबहू जुड़वा होता जस्ट एक अलग टाइमलाइन से अब इसी टेक्नोलॉजी को यूज करके क्लोनेट की सीईओ ब्रिगेट बॉय सेलियर का यह दावा है कि उन्होंने एटलीस्ट 20 ह्यूमन क्लोनस ऑलरेडी बना लिए और उनमें से पहली बेबी ईव दिसंबर 26 2002 को पैदा भी हो चुकी है व्हिच मींस आज ईव एक 22 साल की आम कॉलेज गोइंग लड़की
बनकर शायद हमारे बीच ही कहीं पर रह रही है और यह फैक्ट कि व इंसान का ही एक क्लोन है उसे शायद पता भी नहीं बट क्लोनिंग तो बैंड है राइट सो यह कैसे पॉसिबल हो रहा है वेल इट टर्न्स आउट दैट्ची बैंड है आउट ऑफ टोटल 195 कंट्रीज दैट वी हैव नाउ और इसीलिए क्लोनेट ने भी ईव और बाकी के क्लोन बेबीज को अपने होम कंट्री यूएसए के बाहर डिवेलप किया दूसरी बात जिन 46 देशों ने इसे बैन किया है उसमें से भी ऑलमोस्ट सभी देशों में सिर्फ ह्यूमन क्लोनिंग बैंड है एनिमल क्लोनिंग नहीं यानी कि एनिमल्स पर क्लोनिंग के ट्रायल्स करके क्लोनिंग टेक्नीक को पॉलिश
करना जोरों शोरों से सभी देशों में चालू है इनफैक्ट आपको शायद पता भी नहीं होगा पर आज के समय में कई सारे फॉरेन सेलिब्रिटीज अपने पेट्स के आखिरी समय में उनके टिशू के सैंपल्स कलेक्ट करते हैं और उन्हें यूएस बेस्ड वाय जन पेट्स चाइना बेस्ड सीनो जीन या फिर साउथ कोरिया बेस्ड सोम बायोटेक को सेंड करते हैं एंड देन विद इन जस्ट टू टू थ्री मंथ्स उनके मरे हुए पेट के क्लोंड पपीज उनके घर पर डिलीवर कर दिए जाते हैं यानी कि आज के तारीख में हम क्लोनिंग में इतने आगे बढ़ चुके हैं कि अगर यह बैन पूरी तरीके से हट जाए तो हम किसी भी इंसान का
एक बिल्कुल डिट्टो कार्बन कॉपी बिल्कुल क्लोन क्रिएट कर सकते हैं इनफैक्ट शुरुआत में मैंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के जिन साइंटिस्ट की बात की थी जिन्होंने कैंसर पेशेंट का एक मिनिएचर क्लोन बनाया था वेल वो हमारी इसी ह्यूमन क्लोनिंग एबिलिटी को दर्शाता है इस रिसर्च के लीड साइंटिस्ट प्रोफेसर गडा वंजक नवको विच और उनकी टीम ने सबसे पहले चार सेपरेट कंपार्टमेंट्स में पेशेंट के हार्ट बोन लिवर और स्किन के टिशूज को ग्रो किए फिर उन्हें आर्टिफिशियल ब्लड वेसल्स के जरिए कनेक्ट करके उनमें पेशेंट का ब्लड भी सर्कुलेट करवाया और फिर उस पे एंटी कैंसर ड्रग डॉक्सरूबिसिन टेस्ट
करके रियल लाइफ ह्यूमन ट्रायल्स के साथ कंपेयर किया रिजल्ट्स में आया कि वो मिनिएचर ऑर्गन सिस्टम बिल्कुल वैसे ही रिएक्ट कर रहा है जैसा डॉक्सो रोबे सन के क्लिनिकल ट्रायल्स में एक असली इंसानी शरीर करता है यानी कि अगर एथिकल कंसर्न्स ना हो तो वी आर दिस क्लोज टू बिकमिंग गॉड सो फ्रेंड्स इस वीडियो को अपने फ्रेंड्स और फैमिली मेंबर्स के साथ जरूर शेयर करना जैसे आपको पता है हमारा मिशन है कि हम इंडिया में साइंटिफिक थिंकिंग फैलाना चाहते हैं और एक साइंटिफिक कल्चर डिवेलप करना चाहते हैं जो हर एक इंसान को अपनी लाइफ में तो एंपावर करेगा ही बट हमारे देश के लिए भी ब्रिलियंट माइंड और साइंटिस्ट क्रिएट करेगा.
4 Biggest SCIENTIFIC ACHIEVEMENTS of 2024
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